मैं अपने प्यार का क्या करू..
चाहते है उसको इस कदर
उसके साथ चली हर डगर।
क्यों उसे ये समझ नहीं आ पाता
उसके लिए ही ये दिल घबराता।
कोई ये समझाए मुझे,
मैं अपने प्यार का करू..
कोई आइना ऐसा बनाओ
जिसमे वो देखे खुदको
मेरी नज़रों से ।
वो सुने हर बात भी जो..
जो अल्फ़ाज़ न हो पाये
आज़ाद मेरे लबों से ।
चाहत होती हैं न उसे चाहूँ ,
पर मैं अपने प्यार का क्या करू..
-अ’नामी’
ab kya kahu, unhe kaise samjhayen 🙂
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🙂 Yahi to sawal he..
न वो समझ सके, न हम समझा पाए
कोई तो समझे, वो न सही हम ही सही ।
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chalo koi to samjha…bekaar mein samjha rahe ho usko jo samajh nahin raha!
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Silent wisdom 🙂
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आपने प्यार पर बहुत अच्छा लिखा है। रिस्ते चाहे जो हो प्यार करने के लिए होता है बस करते जाओ समझने समझाने का नाम प्यार नहीं है मेरे हिसाब से।
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शुक्रिया रजनी जी। आपने सही कहा, समझाने का नाम प्यार नहीं । प्यार होता है अपने आप समझने के लिए ।
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